Thursday, June 3, 2010

चीन के मोहताज हो जाएंगे भारत-बांग्लादेश

  • चीन की तिब्बत में उग्र ब्रह्मपुत्र नदी के उद्गम पर त्सांगपो के नाम से प्रसिद्ध इस नदी का रास्ता बदलने की एक महत्वाकांक्षी योजना है। चीन ने नदी पर झांगमू पनबिजली परियोजना शुरू कर दी है। पूरी हो जाने पर इस विशाल बांध से चार करोड़ किलोवाट प्रति घंटे बिजली पैदा होगी, जो यांगत्से नदी पर दुनिया के सबसे बड़े थ्री गार्जिज बांध से पैदा होने वाली बिजली से दोगुनी होगी।

  • पता चला है कि इस साल 16 मार्च को इस परियोजना का उद्घाटन हुआ और 2 अप्रैल से निर्माण भी शुरू हो गया। भारत और बांग्लादेश का इन खबरों से चिंतित होना स्वाभाविक है। माननीय विदेशमंत्री ने हाल ही में राज्यसभा में कहा, जब हम बीजिंग में मिले थे तो इस परियोजना की बात उठी थी। चीन ने आश्वासन दिया है कि बांधस्थल पर पानी की कतई बर्बादी नहीं होगी और इससे बहाव के हमारे निचले क्षेत्र पर कोई असर नहीं होगा।

  • करीब चार साल पहले भी यह मुद्दा उठाया गया था, लेकिन तब चीन की एक सरकारी रिपोर्ट में इस दावे को खारिज करते हुए कहा गया था कि बांध का विचार अनावश्यक, अव्यावहारिक और अवैज्ञानिक है। अब तो चीन ने बांध बन जाने पर भारत, नेपाल और बांग्लादेश को सस्ती दरों पर बिजली देने की पेशकश कर दी है।

  • ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो हमारी आशंकाएं निर्मूल नहीं हैं, क्योंकि नदी के बदले गए रास्ते से चीन गोबी मरुस्थल में स्थित अपने उत्तरपश्चिमी जि़नजियांग और गान्सू प्रांतों की सिंचाई कर सकेगा। मतलब यह कि भारत और बांग्लादेश को सूखे की स्थिति में और बरसात के मौसम में बाढ़ से बचाव के लिए चीन का मुंह ताकना होगा।

  • इसका असर यह होगा कि दक्षिण एशिया के सर्वाधिक आबादी वाले हिस्सों में करोड़ों लोग मारे और बेघर हो जाएंगे। वैज्ञानिक लिहाज से बात करें तो सबसे पहले एक जलविज्ञान विशेषज्ञ जॉन होर्गन ने कहा था कि गोबी मरुस्थल का विस्तार रोकने के लिए चीन ब्रह्मपुत्र के पानी को उत्तर-पश्चिम ले जाना चाहता है।

  • सरकारी तौर पर इनकार के बावजूद, इस मामले पर चीन में उच्चतम स्तर पर कार्रवाई चल रही है। उदाहरण के लिए, ज़रूरत पड़ने पर नदी के उद्गम के निकट भौतिक स्थानीय विशिष्टताओं और रूपरेखा को बदलने के लिए चीन सीमित परमाणु विस्फोट कर सकता है।

  • चीन इस नदी के करीब 71.4 अरब घन मीटर प्रवाह में से करीब 40 अरब घन मीटर प्रवाह का रास्ता बदलने की सोच रहा है। इतने बड़े पैमाने पर नदी का रुख मोड़ने से भारत और बांग्लादेश जैसे देशों की खेती, मछली पकड़ने और दूसरी गतिविधियों की उम्मीदें खत्म हो जाएंगी, जहां 40 करोड़ लोगों की आजीविका नदियों के पानी पर निर्भर करती है।

  • भारत को एक और बात समझनी होगी कि चीन में अगर किसी योजना का खाका तैयार किया जाता है, तो उस पर अमल किया ही जाता है। खास बात यह है कि ग्रेट बेंड, भूकंप की जबर्दस्त संभावना वाले इलाके में स्थित है। एक विशाल जलाशय और कुछ विस्फोटों से भूकंपों का नया सिलसिला शुरू हो सकता है, जो अगस्त 1950 के भूकंप से भी अधिक विनाशकारी साबित हो सकता है।

  • अगर बीजिंग अपनी त्सांगपो योजना पर अमल करता है तो इसे दक्षिण एशिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा समझा जाएगा?

संदर्भ:-

एशिया डिफेंस न्यूज इंटरनेशनल, नई दिल्ली

2 comments:

L.R.Gandhi said...

यह भी नेहरु जी की एक देन है ,जिसे आने वाली पीढियां भोगेंगी।

माधव( Madhav) said...

the report lacks fundamentals

यह आम भारतीय की आवाज है यानी हमारी आवाज...